सक्करपहुदिसु एवं अविरदठाणे ण होइ कम्मइयं ।
वेगुव्वियमिस्सो वि य तेसिं मिच्छेव वोच्छेदो ॥२८॥
शर्कराप्रभृतिषु एवं, अविरतस्थाने न भवति कार्मणं ।
वैक्रियिकमिश्रमपि च तयो: मिथ्यात्वे एव व्युच्छेद: ॥
अन्वयार्थ : द्वितीय नरक से लेकर सातवें नरक तक इसी प्रकार आस्रव हैं, अंतर केवल इतना ही है कि अविरत गुणस्थान में वैक्रियक मिश्र और कार्मण नहीं होता है क्योंकि इन दोनों की व्युच्छित्ति मिथ्यात्व गुणस्थान में ही हो जाती है ॥२८॥