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शराब पीने वालों की कथा

  कथा 

कथा :

सब सुखों के देने वाले सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार कर शराब पीकर नुकसान उठाने वाले एक ब्राह्मण की कथा लिखी जाती है । वह इसलिए कि इसे पढ़कर सर्व-साधारण लाभ उठावें ।

वेद और वेदांगों का अच्छा विद्वान एक पात नाम का एक संन्यासी एक चक्रपुर से चलकर गंगा नदी की यात्रार्थ जा रहा था । रास्ते में जाता हुआ यह दैवयोग से विन्ध्याटवी में पहुँच गया । यहाँ जवानी से मस्त हुए कुछ चाण्डाल लोग दारू पी-पीकर एक अपनी जाति की स्त्री के साथ हँसी मजाक करते हुए नाच-कूद रहे थे, गा रहे थे और अनेक प्रकार की कुचेष्टाओं में मस्त हो रहे थे । अभागा संन्यासी इस टोली के हाथ पड़ गया । इन लोगों ने उसे आगे न जाने देकर कहा – अहा ! आप भले आये ! आप ही की हम लोगों में कसर थी । आइए, मांस खाइए, दारू पीजिए और जिन्दगी का सुख देने वाली इस खूबसूरत औरत का मजा लूटिए । महाराज जो आज हमारे लिए बड़ी खुशी का दिन है और ऐसे समय में जब आप सरीखे महात्माओं का आना, सहज में थोड़े ही होता है ? और फिर ऐसे खुशी के समय में । लीजिए, अब देर न कर हमारी प्रार्थना को पूरी कीजिए इनकी बातें सुनकर बेचारे संन्यासी के तो होश उड़ गये । वह इन शराबियों को कैसे समझाए, क्या कहे, और यह कुछ कहे सुनें भी तो वे मानने वाले कब ? यह बड़े संकट में फँस गया । तब भी उसने इन लोगों से कहा – भाइयो ! सुनो ! एक तो मैं ब्राह्मण उस पर संन्यासी, फिर बतलाओ मैं मांस, मदिरा कैसे खा-पी सकता हूँ ? इसलिए तुम मुझे जाने दो । उन चाण्डालों ने कहा – महाराज कुछ भी हो, हम तो आपके बिना कुछ प्रसाद लिए तो जाने नही देंगे । आप से हम यहाँ तक कह देते हैं कि यदि आप अपनी खुशी से खायेंगे तो बहुत अच्छा होगा, नहीं तो फिर जिस तरह बनेगा हम आपको खिलाकर ही छोड़ेंगे । बिना हमारा कहना किये आप जीते जी गंगाजी नहीं देख सकते । अब तो संन्यासीजी घबराये । वे कुछ विचार करने लगे, तभी उन्हें स्मृतियों के कुछ प्रमाण-वाक्य याद आ गए --

जो मनुष्य तिल या सरसों के बराबर मांस खाता है वह नरकों मे तब तक दु:ख भोगा करेगा, जब तक कि पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्र रहेंगें । अर्थात् अधिक मांस खानेवाला नही । ब्राह्मण लोग यदि चाण्डाली के साथ विषय सेवन करें तो उनकी ‘काष्टभक्षण’ नाम के प्रायश्चित द्वारा शुद्धि हो सकती है । जो आँवले, गुड़ आदि से बनी शराब पीते हैं, वह शराब पीना नहीं कहा जा सकता - आदि ।

इसलिए जैसा ये कहते हैं, उसके करने में शास्त्रों, स्मृतियों से तो कोर्इ दोष नहीं आता । ऐसा विचारकर उस मूर्ख ने शराब पी ली । थोड़ी ही देर बाद उसे नशा चढ़ने लगा । बेचारे को पहले कभी शराब पीने का काम पड़ा नहीं था इसीलिये उसका रंग इसपर और अधिकता से चढ़ा । शराब के नशे मे चूर होकर यह सब सुध-बुध भूल गया, अपनेपन का इसे कुछ ज्ञान न रहा । लंगोटी आदि फैंककर यह भी उन लोगों कि तरह नाचने-कूदने लगा जैसे कोर्इ भूत-पिशाच के पंजे में पड़ा हुआ उन्मत्त की भाँति नाचने-कूदने लगता है । सच है, कुसंगति कुल, धर्म, पवित्रता आदि सभी का नाश कर देती है । संन्यासी बड़ी देर तक इसी तरह नाचता-कूदता रहा पर जब वह थोडा थक गया तो उसे जोर से भूख लगी । वहाँ खाने के लिए मांस के सिवा कुछ भी नहीं था । संन्यासी ने तब मांस ही खा लिया । पेट भरने के बाद उसे काम ने सताया । तब उसने यौवन कि मस्ती से मस्त उस स्त्री के साथ अपनी नीच-वासना पूरी की । मतलब यह है कि एक शराब पीने से ये सब नीच कर्म करने पड़े । दूसरे ग्रन्थों मे भी इस एक पात संन्यासी के सम्बन्ध में लिखा है कि – मूर्ख एक पात संन्यासी ने स्मृतियों के वचनों को प्रमाण मानकर शराब पी, मांस खाया और चाण्डालिनी के साथ विषय-सेवन किया । इसलिए बुद्धिमानों को उचित है कि ये सहसा किसी प्रमाण पर विश्वास न कर बुद्धि से काम लें । क्योंकि मीठे पानी में मिला हुआ विष भी जान लिए बिना नहीं छोड़ता ।

देखिये, एक पात संन्यासी गंगा-गोदावरी का नहानेवाला था, विष्णु का सच्चा भक्त था, वेदों और स्मृतियों का अच्छा विद्वान था, पर अज्ञान से स्मृतियों के वचनों को हेतु-शुद्ध मानकर अर्थात् ऐसी शराब पीने में पाप नहीं, चाण्डालिनी का सेवन करने पर भी प्रायश्चित द्वारा ब्राह्मण की शुद्धि हो सकती है, थेाडा मांस खाने में दोष है, न कि ज्यादा खाने में । इस प्रकार मन की समझौती करके उसने मांस खाया, शराब पी और अपने वर्षों के ब्रह्मचर्य को नष्ट कर वह कामी हुआ । इसलिए बुद्धिमानों को उन सच्चे शास्त्रों का अभ्यास करना चाहिए जो पाप से बचाकर कल्याण का रास्ता बतलाने वाले हैं और ऐसे शास्त्र जिनभगवान ने ही उपदेश किये हैं ।