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दूसरों के गुण ग्रहण करने की कथा

  कथा 

कथा :

सब प्रकार के दोषों से रहित जिनभगवान् को नमस्कार कर सम्यग्दर्शन को खूब दृढ़ता के साथ पालन करनेवाले जिनदास सेठ की पवित्र कथा लिखी जाती है ।

प्राचीन काल से प्रसिद्ध पाटलिपुत्र (पटना) में जिनदत्त नामका एक प्रसिद्ध और जिनभक्त सेठ हो चुका है । जिनदत्त सेठ की स्त्री का नाम जिनदासी था । जिनदास, जिसकी कि यह कथा है, इसी का पुत्र था । अपनी माता के अनुसार जिनदास भी र्इश्वर-प्रेमी, पवित्र-हृदयी और अनेक गुणों का धारक था ।

एक बार जिनदास सुवर्ण द्वीप से धन कमाकर अपने नगर की ओर आ रहा था । किसी काल नामके देव की जिनदास के साथ कोर्इ पूर्व-जन्म की शत्रुता होगी । और इसलिए वह देव इसे मारना चाहता होगा । यही कारण था कि उसने कोर्इ सौ-योजन चौड़े जहाज पर बैठे-बैठे ही जिनदास से कहा -- जिनदास, यदि तू यह कह दे कि जिनेन्द्र-भगवान् कोर्इ चीज नहीं, जैन-धर्म कोर्इ चीज नहीं, तो तुझे मै जीता छोड़ सकता हूँ, नहीं तो मार डालूँगा । उस देव का वह डराना सुन जिनदास वगैरह ने हाथ जोड़कर श्री महावीर भगवान् को बड़ी भक्ति से नमस्कार किया और निडर होकर वे उससे बोले -- पापी, यह हम कभी नहीं कह सकते कि जिन-भगवान् और उनका धर्म कोर्इ चीज नहीं बल्कि हम यह दृढ़ता के साथ कहते हैं कि केवल-ज्ञान द्वारा सूर्य से अधिक तेजस्वी जिनेन्द्र-भगवान् और संसार द्वारा पूजा जाने वाला उनका मत सबसे श्रेष्ट है । उनकी समानता करनेवाला कोर्इ देव और कोर्इ धर्म संसार में है ही नहीं । इतना कहकर ही जिनदास ने सबके सामने ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्ती की कथा, जो कि पहले लिखी जा चुकी है, कह सुनार्इ । उस कथा को सुनकर सबका विश्वास और भी दृढ़ हो गया ।

इन धर्मात्माओं पर इस विपत्ति के आने से उत्तरकुरू में रहने वाले अनाव्रत नाम के यक्ष का आसन कॅंपा । उसने उसी समय आकर क्रोध से कालदेव के सिर पर चक्र की बड़ी जोर की मार जमार्इ और उसे उठाकर बडवानल में डाल दिया ।

जहाज के लोगों की इस अचल भक्ति से लक्ष्मी-देवी बड़ी प्रसन्न हुर्इ । उसने आकर इन धर्मात्माओं का बड़ा आदर-सत्कार किया और इनके लिए भक्ति से अर्घ चढ़ाया । सच है, जो भव्य-जन सम्यग्दर्शन का पालन करते हैं, संसार में उनका आदर, मान कौन नहीं करता । इसके बाद जिनदास वगैरह सब लोग कुशलता से अपने घर आ गये । भक्ति से उत्पन्न हुए पुण्य ने इनकी सहायता की । एक दिन मौका पाकर जिनदास ने अवधिज्ञानी मुनि से कालदेव ने ऐसा क्यों किया, इस बाबत खुलासा पूछा । मुनिराज ने इस बैर का सब कारण जिनदास से कहा । जिनदास को सुनकर सन्तोष हुआ ।

जो बुद्धिमान् हैं, उन्हें उचित है या उनका कर्त्तव्य है कि वे परम-सुख के लिए संसार का हित करनेवाले और मोक्ष के कारण पवित्र-सम्यग्दर्शन को ग्रहण करें । इसे छोड़कर उन्हें और बातों के लिए कष्ट उठाना उचित नहीं, कारण वे मोक्ष के कारण नही हैं ।