ज्ञानमती :
भगवन् ! पंचकल्याणक में तव, देवों का आगमन महान;;केवलज्ञान प्रगट होने पर, नभ में अधर गमन सुखदान;;छत्र, चमर आदिक वैभव सब, मायावी में भी दिखते;;अत: आप हम जैसों द्वारा, पूज्य-वंद्य नहीं हो सकते ॥१॥
आपके जन्म-कल्याणक आदिकों में देवों का आगमन, आप का आकाश मार्ग में गमन एवं समवसरण में चामर, छत्र आदि अनेक विभूतियों का होना आदि यह सब बाह्य वैभव मायावी विद्याधर मस्करी आदिकों में भी पाया जा सकता है अत: हे भगवन् ! इन कारणों से हम लोगों के लिए आप महान नहीं हैं -- स्तुति करने योग्य नहीं हैं ॥१॥
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