+ क्षणिक एकांत में कार्यकारण भाव असंभव है -
न हेतु-फल-भावादि-रन्यभावादनन्वयात्
सन्तानान्तरवन्नैक:, सन्तानस्तद्वत: पृथक् ॥43॥
अन्वयार्थ : [हेतुफलभावादि: न अन्यभावात् सन्तानान्तरवत् अनन्वयात्] सर्वथा क्षणिक एकांत में कार्य कारण भाव आदि नहीं बन सकते हैं क्योंकि वे परस्पर में भिन्न होते हैं उनमें भिन्न सन्तान के समान अन्वय नहीं पाया जाता है [एक: संतान: तद्वत: पृथक् न] जो एक संतान होता है, वह संतानी से भिन्न नहीं होता है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


हेतुभाव फलभाव न होंगे, क्योंकि न अन्वय हैं उनमें;;भिन्न-भिन्न संतान सदृश, है अन्यभाव पूर्वोत्तर में;;पूर्वोत्तर क्षण में इक ही, संतान कहो तो ठीक नहीं;;क्योंकि निज वस्तू से इक, संतान पृथक् है कभी नहीं
इस क्षणिक एकांत पक्ष में भिन्न संतान के समान कारणकार्यभाव आदि कुछ भी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि इनमें अन्वय के न होने स भिन्नपना है। संतानी से पृथक् कोई एक संतान नहीं है।

भावार्थ-बौद्धो के यहाँ मृत्पिंड और घट में कारण कार्य भाव नहीं बनता है क्योंकि उनके यहाँ दोनों ही भिन्न हैं। दोनों में अन्वय रूप द्रव्य एक नहीं है। हम जैनों ने तो मृत्पिंड और घट दोनों में अन्वय रूप द्रव्य एक माना है ये लोग नहीं मानते हैं। अतएव जैसे देवदत्त और जिनदत्त भिन्न-भिन्न हैं, उनमें अन्वय भाव नहीं है। वैसे ही देवदत्त की बाल्यावस्था, युवावस्था रूप पर्यायें भी भिन्न ही हैं क्योंकि इन पर्यायों में भी बौद्ध अन्वय रूप एक आत्मा नहीं मानता है। अत: संतानी से भिन्न एक संतान परमार्थभूत कोई वस्तु नहीं है।