
ज्ञानमती :
यदि कार्य सर्वथा असत् है, गगन कुसुमवत् निंह होगा;;यदि असत् की हो उत्पत्ती, उपादान फिर क्या होगा?;;जौ बीजों से जौ ही हों, यह उपादान कारण निष्फल;;पुन: कार्य के उत्पादन में, सब विश्वास रहा असफल यदि कार्य को सर्वथा असत्रूप ही मानें, तब तो आकाश पुष्प के समान वह कभी उत्पन्न ही नहीं हो सकेगा एवं उसके उपादान कारण का नियम भी नहीं बन सकेगा तथा उसके अभाव में कार्य की उत्पत्ति का कोई विश्वास भा नहीं हो सकेगा। भावार्थ-बौद्धों का कहना पूर्वोक्त सांख्य से सर्वथा उल्टा ही रहता है। सांख्य ने कहा था कि मिट्टी में घट सदा विद्यमान ही रहता है और बौद्ध कहता है कि मिट्टी के पिंड का सर्वथा नाश हो जाने के बाद घड़ा उत्पन्न होता है अत: घट कार्य सर्वथा अविद्यमान से ही बना है। इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि तब तो जैसे आकाश के फूल नहीं हैं वैसे ही कारण के नहीं रहने से वे कार्य भी नहीं होंगे। यदि जबरदस्ती मान भी लेवोगे तो भी उस कार्य की उत्पत्ति में उपादान कारण का कुछ भी नियम नहीं रहेगा। कारण दो प्रकार के होते हैं एक निमित्तकारण, दूसरा उपादान कारण। घट के बनने में मिट्टी उपादान कारण है, वही घटरूप परिणत हो जाती है। दण्ड, चाक, कुंभार आदि निमित्त कारण हैं ये छूट जाते हैं। यदि उपादान कारण का सर्वथा विनाश करके घड़ा बना है, तब तो तन्तु से या बीज से भी घड़ा बन जावे, मिट्टी से घट, तंतु से वस्त्र और बीज से अंकुर ऐसा नियम नहीं बन सकेगा तथा कार्य की उत्पत्ति में भी विश्वास न रहने से कृषक गेहूँ के बीज को बोकर गेहूँ की उत्पत्ति में विश्वास नहीं कर पावेगा। |