ज्ञानमती :
हित के इच्छुक भव्यजनों को, सत्य-असत्य बताने को;;सम्यक् मिथ्या उपदेशों के, अर्थ विशेष समझाने को;;इस प्रकार से रची गई यह, आप्त समीक्षा को करती;;कुशल‘आप्तमीमांसा’ स्तुति यह, सम्यक् ‘‘ज्ञानमती’’ करती
हित प्राप्ति की इच्छा करने वाले भव्य जीवों को सम्यक उपदेश और मिथ्या उपदेश के अर्थ विशेष का ज्ञान कराने के लिए यह आप्तमीमांसा नाम की स्तुति रचना मैंने (श्री समंतभद्र स्वामी ने) बनाई है।भावार्थ-जो भव्य हैं वे ही अपनी आत्मा के हित की भावना करेंगे न किअभव्य, अत: भव्य जीव ही सम्यक् उपदेश को प्राप्तकर-ग्रहणकर मिथ्या उपदेश का त्याग करेंगे। यह आप्तमीमांसा स्तोत्र हमारे और आपके सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति और विशुद्धि में निमित्त बनें, यही श्रीजिनेन्द्रदेव से प्रार्थना है। |