
ज्ञानमती :
जो विधेय है वह अपने, प्रतिषेध्य नास्ति सह अविरोधी;;इच्छित अर्थों का साधन वह, स्याद्वाद उभयात्मक ही;;वैसे ही आदेय-हेय है, वस्तु का सर्वथा नहीं;;इस प्रकार से स्याद्वाद की, सम्यक् स्थिति घटित हुई
‘अस्ति’ इत्यादि शब्द से वाच्य विधेय वाक्य ही ईप्सित अर्थक्रिया के प्रति कारण है और वह प्रतिषेध्य-नास्तित्वादि धर्म से अविरोधीअविनाभावी है एवं उसी प्रकार से ही आदेय और हेय हैं इस प्रकार से स्याद्वाद की सम्यक् व्यवस्था हो जाती है।
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