+ स्याद्वाद की सम्यक् व्यवस्था -
विधेयमीप्सितार्थाङ्गं प्रतिषेध्याऽविरोधि यत्
तथैवाऽऽदेय-हेयत्व-मिति स्याद्वादसंस्थिति: ॥113॥
अन्वयार्थ : [यत् विधेयं ईप्सितार्थाङ्गं प्रतिषेध्याऽविरोधि] जो विधि वाक्य के द्वारा कहा गया विधेय है वह इच्छित अर्थ का कारण है और अपने प्रतिषेध्यनास्ति के साथ अविनाभावी होने से अविरोधी है [तथैव आदेयहेयत्वं इति स्याद्वादसंस्थिति:] और उसी प्रकार वस्तु का उपादेय एवं हेयपना सिद्ध है अन्यथा नहीं। इस प्रकार से स्याद्वाद की सम्यक् प्रकार से व्यवस्था हो जाती है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


जो विधेय है वह अपने, प्रतिषेध्य नास्ति सह अविरोधी;;इच्छित अर्थों का साधन वह, स्याद्वाद उभयात्मक ही;;वैसे ही आदेय-हेय है, वस्तु का सर्वथा नहीं;;इस प्रकार से स्याद्वाद की, सम्यक् स्थिति घटित हुई
‘अस्ति’ इत्यादि शब्द से वाच्य विधेय वाक्य ही ईप्सित अर्थक्रिया के प्रति कारण है और वह प्रतिषेध्य-नास्तित्वादि धर्म से अविरोधीअविनाभावी है एवं उसी प्रकार से ही आदेय और हेय हैं इस प्रकार से स्याद्वाद की सम्यक् व्यवस्था हो जाती है।