+ मंगलाचरण -
प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदाभासाद्विपर्ययः ।
इति वक्ष्ये तयोर्लक्ष्म सिद्धमल्पं लघीयसः ॥
अन्वयार्थ : [प्रमाणात्] प्रमाण से (अर्थात् सम्यग्ज्ञान से) [अर्थसंसिद्धि:] अर्थ की सम्यक् प्रकार सिद्धि होती है तथा [तदाभासात्] उसके आभास से (प्रमाणाभास / मिथ्याज्ञान से) [विपर्ययः] विपरीत होता है, इष्ट की संसिद्धि नहीं होती है [इति] इसलिए [तयोः] उन दोनों - (प्रमाण और प्रमाणाभास) के [सिद्धिम्] पूर्वाचार्यों से प्रसिद्ध एवं पूर्वापर विरोध से रहित [अल्पं] संक्षिप्त [लक्ष्म] लक्षण को [लघीयसः] लघुजनों (अल्पबुद्धियों) के हितार्थ [वक्ष्ये] मैं (आचार्य माणिक्यनन्दि) कहूँगा।

  टीका