दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ॥5॥
अन्वयार्थ : पूर्व में देखे हुए पदार्थ में भी यदि समारोप अर्थात् संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय आ जाता है तो वह पदार्थ भी अपूर्वार्थ बन जाता है ।
Meaning : If the knowledge of an object, known earlier through some kind of valid-knowledge , suffers from fallacies that object too is 'not yet ascertained' .
टीका