+ अपूर्वार्थ का दूसरा लक्षण -
दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ॥5॥
अन्वयार्थ : पूर्व में देखे हुए पदार्थ में भी यदि समारोप अर्थात् संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय आ जाता है तो वह पदार्थ भी अपूर्वार्थ बन जाता है । (जैसे पढी हुई पुस्तक अनभ्यास से पुन: अपठित जैसी हो जाती है।)
Meaning : If the knowledge of an object, known earlier through some kind of valid-knowledge (pramāna), suffers from fallacies (samāropa) that object too is 'not yet ascertained' (apūrvārtha).

  टीका