+ प्रत्यभिज्ञान का लक्षण वा स्वरूप - -
दर्शनस्मरणकारकं सङ्कलनं प्रत्यभिज्ञानं, तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि ॥5॥
अन्वयार्थ : [दर्शनस्मरणकारकं] वर्तमान में पदार्थ का दर्शन और पूर्व में देखे हुए का स्मरण ऐसे [सङ्कलनं] अनुसन्धानरूप ज्ञान को [प्रत्यभिज्ञानं] प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । जैसे - [इदं तदेव] 'यह वही है' (एकत्व-प्रत्यभिज्ञान); [तत्सदृशं] 'उसके समान है' (सादृश्य-प्रत्यभिज्ञान); [तद्विलक्षणं] 'उससे भिन्न है' (वैलक्षण्य-प्रत्यभिज्ञान); [तत्प्रतियोगी] 'उसका प्रतियोगी है' (प्रातियोगिक-प्रत्यभिज्ञान); [इत्यादि] इत्यादि । इसप्रकार और भी प्रत्यभिज्ञान के भेद हो सकते हैं ।
Meaning : The knowledge based on the confluence of the present vision and remembrance (smruti) of the earlier vision is recognition (pratyabhigyāna). Recognition (pratyabhigyāna) is of several kinds: 'It is the same'; 'It is like that'; 'It is different from that'; 'It is larger than that'; etc.

  टीका