
साध्यं धर्मः क्वचित्तद्विशिष्टो वा धर्मी ॥21॥
अन्वयार्थ : [क्वचित्] कहीं पर [धर्मः] धर्म [साध्यं] साध्य होता है [वा] अथवा [तद्विशिष्टः] उस धर्म से विशिष्ट [धर्मी] धर्मी साध्य होता है।
Meaning : At places the attribute and at some other places the possessor-of-the-attribute is the object-to-be-proved .
टीका