मुख्तार :
संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय से रहित ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं । समीचीन ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं । अन्यूनमनतिरिक्तं याथातत्थ्यं विना च विपरीतात् ।
अर्थ – जो ज्ञान न्यूनता रहित, अधिकता रहित, विपरीतता रहित और सन्देह रहित, जैसा का तैसा जानता है, शास्त्र के ज्ञाता पुरूष उसको सम्यक्ज्ञान कहते हैं ।निःसन्देहं वेद: यदाहुस्तज्ज्ञानमागमिनः ॥र.क.श्रा.४२॥
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