पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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उत्तर
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प्रमाणनयविवक्षातः ॥33॥
अन्वयार्थ :
प्रमाण और नय की विवक्षा के द्वारा उन इक्कीस स्वभावों के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होता है ।
मुख्तार
मुख्तार :
प्रमाणनयैरधिगमः ॥त.सू.१/६॥
अर्थ –
प्रमाण व नय के द्वारा वस्तु का ज्ञान होता है ।