मुख्तार :
आगे सूत्र १८१ में 'प्रमाणेन वस्तुसंगृहीतार्थेकांशो नयः ।' इन शब्दों द्वारा यह कहा गया है कि जो प्रमाण के द्वारा ग्रहण की हुई वस्तु के एक अंश को ग्रहण करे वह नय है । प्रमाणपरिगृहीतार्थैकदेशे वस्त्वध्यवसायो नमः ॥ध.१/८३॥
अर्थ – प्रमाण के द्वारा ग्रहण की गई वस्तु के एक वंश में वस्तु का निश्चय करने वाला ज्ञान नय है ।नय के इस लक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रमाण के अवयव नय है । सूत्र १८१ में नय का लक्षण विभिन्न प्रकार से कहा गया है । |