मुख्तार :
इसलिये मतिज्ञान परोक्ष है । कहा भी है -- तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् । ॥त.सू.१/१४॥
अर्थ – उस मतिज्ञान में इन्द्रियों और मन निमित्त होते हैं, अर्थात् वह मतिज्ञान इन्द्रिय और मन की अपेक्षा रखता है ।श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादशभेदम् ॥त.सू.१/२०॥
अर्थ – मतिज्ञान पूर्वक श्रुतज्ञान होता है ।इस प्रकार आत्मा से पर जो इन्द्रिय और मन, उनकी सहायता की अपेक्षा रखने से मति और श्रुत ये दोनों ज्ञान परोक्ष है । मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥त.सू.१/२६॥
अर्थ – मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय सर्व द्रव्यों की असर्वपर्यायें है, अर्थात् द्रव्यों की त्रिकालवर्ती कुछ पर्यायों को मतिज्ञान और श्रुतज्ञान जानते है ।॥ इस प्रकार प्रमाण का स्वरूप कहा गया ॥ |