+ भेदकल्‍पना-सापेक्ष अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिकनय -
भेदकल्‍पनासापेक्षोऽशुद्धद्रव्‍यार्थिको यथात्‍मनो दर्शनज्ञानादयोगुणा: ॥52॥
अन्वयार्थ : भेदकल्‍पना-सापेक्ष द्रव्‍य अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है, जैसे -- आत्‍मा के ज्ञान-दर्शनादि गुण हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

आत्‍मा एक अखण्‍ड द्रव्‍य है, उसमें ज्ञान-दर्शन आदि गुण नहीं हैं, ऐसा शुद्ध द्रव्‍यार्थिक नय का प्रयोजन है । कहा भी है-

णवि णाणं ण चरितं ण दंसणं जाणगो सुद्धो ॥स.सा.॥

अर्थ – आत्‍मा में न ज्ञान है, न चारित्र है, न दर्शन है, वह तो ज्ञायक, शुद्ध है ।

आत्‍मा में ज्ञान, दर्शन आदि गुणों की कल्‍पना करना अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है । अर्थात् एक अखण्‍ड द्रव्‍य में गुणों का भेद करना अशुद्ध द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है ।

भेदे सहि सम्‍बंधं गुणगुणिर्येईण कुणइ जो दव्‍वे ।
सो वि अशुद्धो विठ्ठो सहिओ सो भेदकप्‍पेण ॥न.च.२३॥
अर्थ – गुण-गुणी में भेद होने पर भी जो नय द्रव्‍य में गुण-गुणी का सम्‍बन्‍ध करता है वह भेद-कल्‍पना सहित अशुद्ध नय जानना चाहिये ।