+ उत्‍पादव्‍यय-सापेक्ष अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिकनय -
उत्‍पादव्‍ययसापेक्षोऽशुद्धद्रव्‍यार्थिको यथैकस्मिन् समये द्रव्‍यमुत्‍पादव्‍ययध्रौव्यात्‍मकम् ॥51॥
अन्वयार्थ : उत्‍पाद-व्‍यय की अपेक्षा सहित द्रव्‍य अशुद्ध द्रव्‍यार्थिकनय का विषय है, जैसे -- एक ही समय में उत्‍पाद-व्‍यय-ध्रौव्यात्‍मक द्रव्‍य है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

शुद्ध द्रव्‍यार्थिक-नय का विषय मात्र सत्ता है । क्‍योंकि उत्‍पाद-व्‍यय पर्यायार्थिक नय का विषय है । द्रव्‍य का लक्षण सत् है और सत् का लक्षण उत्‍पाद-व्‍यय-ध्रौव्यमयी है । इस प्रकार द्रव्‍य का लक्षण उत्‍पाद-व्‍यय-ध्रौव्य रूप है, किन्‍तु उत्‍पाद-व्‍यय पर्यायार्थिक नय का विषय होने के कारण उत्‍पाद-व्‍यय-ध्रौव्यात्‍क अशुद्ध द्रव्‍य को अशुद्ध द्रव्‍यार्थिक नय का विषय कहा है ।

उत्‍पादवयविमिस्‍सा सत्ता गहिऊण भणइ तिदयत्तं ।
दव्‍वस्‍स एयसमेय जो हु असुद्धो हवे विदि‍ओ ॥न.च.२२॥
अर्थ – उत्‍पाद-व्‍यय मिश्रित सत्ता अर्थात् एक समय में इन तीन मयी द्रव्‍य को ग्रहण करने वाला दूसरा अशुद्ध नय है ।