+ स्‍वद्रव्‍यादिग्राहक दव्‍यार्थिकनय -
स्‍वद्रव्‍यादिग्राहकद्रव्‍यार्थिको यथा स्‍वद्रव्‍यादिचतुष्‍टयापेक्षया द्रव्‍य‍मस्ति ॥54॥
अन्वयार्थ : स्‍व-द्रव्‍य स्‍व-क्षेत्र स्‍व-काल स्‍व-भाव की अपेक्षा द्रव्‍य को अस्ति रूप से ग्रहण करने वाला नय स्‍वद्रव्‍यादिग्राहक दव्‍यार्थिक नय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

कल्‍याण पावर प्रिंटिंग प्रेस शोलापुर से प्रकाशित संस्‍कृत नयचक्र/३ व ५ पर इस नय का स्‍वरूप निम्‍न प्रकार कहा गया है --

परद्रव्‍यादिनां विवक्षामकृत्‍वा स्‍वद्रव्‍यस्‍वक्षेत्रस्‍वकालस्‍वभावापेक्षाया द्रव्‍यस्‍यास्तित्‍वमस्‍तीति सवद्रव्‍यादिचतुष्‍टयात् ।

अस्तित्‍वं वस्‍तुरूपस्‍य स्‍वद्रव्‍यादिचतुष्‍टयात् ।
एवं यो ववत्‍यभिप्रायं स्‍वादिमाहकनिश्‍चम: ॥८॥
अर्थ – पर-द्रव्‍यादि की विपक्षा न कर, स्‍व-द्रव्‍य, स्‍व-क्षेत्र, स्‍व-काल और स्‍व-भाव की अपेक्षा से द्रव्‍य के अस्तित्‍व को आस्तिरूप से ग्रहण करने वाला नय स्‍वद्रव्‍यादिग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय है । अथवा स्‍वद्रव्‍यादि चतुष्‍टय से वस्‍तु-स्‍वरूप का आस्तिस्‍व बतलाना जिस नय का अभिप्राय है वह स्‍वद्रव्‍याद्रिगाहक द्रव्‍यार्थिक नय है ।

आगे सूत्र १८८ में भी इस नय का कथन है ।