मुख्तार :
यहाँ पर 'सत्ता' का अभिप्राय ध्रौव्य से है और गौण का अर्थ अप्रधान है । प्राकृत नयचक्र में इस का स्वरूप इस प्रकार कहा है -- सत्ता अमुक्खरूवे उप्पादवयं हि गिह्ंणए जो हु ।
ध्रौव्य को गौण करके उत्पाद-व्यय को ग्रहण करने वाला नय अनित्यशुद्ध-पर्यायार्थिक नय है ।सो हु सहावअणिच्चोगाही खलु सुद्धपज्जाओ ॥प्रा.न.च.२०२॥ संस्कृत नयचक्र में भी कहा है -- सत्तागौणत्वाद्यो व्ययमुत्पादं च शुद्धमाचष्टे ।;;सत्तागौणत्वेनोत्पादव्ययवाचक्र: स नय: ॥सं.न.च.९/४२॥
सत्तागौणत्वेनोत्पादव्ययग्राहकस्वभावानित्यशुद्धपर्यायाथिक: ॥१७॥
अर्थ – ध्रौव्य को गौण करके शुद्ध उत्पाद-व्यय को जो नय ग्रहण करता है वह अनित्य शुद्ध-पर्यायार्थिक नय है ।
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