+ अनित्‍यशुद्ध पर्यायार्थिकनय -
सत्तागौणत्‍वेनोत्‍पादव्‍ययग्राहकस्‍वभावोऽनित्‍यशुद्धपर्यायार्थिको यथा समयं समयं प्रति पर्याया विनाशिन: ॥60॥
अन्वयार्थ : ध्रौव्‍य को गौण करके उत्‍पाद-व्‍यय को ग्रहण करने वाला नय अनित्‍यशुद्धपर्यायार्थिक नय है जैसे -- प्रति समय पर्याय विनाश होती है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यहाँ पर 'सत्ता' का अभिप्राय ध्रौव्‍य से है और गौण का अर्थ अप्रधान है । प्राकृत नयचक्र में इस का स्‍वरूप इस प्रकार कहा है --

सत्ता अमुक्‍खरूवे उप्‍पादवयं हि गिह्ंणए जो हु ।
सो हु सहावअणिच्‍चोगाही खलु सुद्धपज्‍जाओ ॥प्रा.न.च.२०२॥
ध्रौव्‍य को गौण करके उत्‍पाद-व्‍यय को ग्रहण करने वाला नय अनित्‍यशुद्ध-पर्यायार्थिक नय है ।

संस्‍कृत नयचक्र में भी कहा है --

सत्तागौणत्‍वाद्यो व्‍ययमुत्‍पादं च शुद्धमाचष्‍टे ।;;सत्तागौणत्‍वेनोत्‍पादव्‍ययवाचक्र: स नय: ॥सं.न.च.९/४२॥
सत्तागौणत्‍वेनोत्‍पादव्‍ययग्राहकस्‍वभावानित्‍यशुद्धपर्यायाथिक: ॥१७॥
अर्थ – ध्रौव्‍य को गौण करके शुद्ध उत्‍पाद-व्‍यय को जो नय ग्रहण करता है वह अनित्‍य शुद्ध-पर्यायार्थिक नय है ।