मुख्तार :
त्रयात्मक शब्द का अभिप्राय यह है कि पूर्व पर्याय का विनाश, उत्तर पर्याय का उत्पाद और द्रव्यपने से ध्रौव्य । इस नय का विषय ध्रौव्य भी होने से इस नय को अशुद्ध पर्यायार्थिक कहा गया है, क्योंकि शुद्ध पर्यायार्थिक नय का विषय ध्रौव्य नहीं होता । प्राकृत नयचक्र में भी इस नय का अनत्यि अशुद्ध पर्यायार्थिकनय कहा गया है, गाथा निम्न प्रकार है -- जो गहइ एक्कसमये उप्पादव्ययघुवत्तसंजुत्त ।
अर्थ – उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये तीनों एक समय में होते हैं । उन उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त सत्ता को जो नय ग्रहण करता है वह अनित्य अशुद्ध-पर्यायार्थिक नय है ।सो सब्भावअणिच्चो असुद्धओ पज्जयत्थिणओ ॥प्रा.न.च.२०३॥ ध्रौव्योत्पादव्ययग्राही कालेनैकेन यो नय: ।
अर्थ – एक ही काल में ध्रौव्य-उत्पाद-व्यय को जो नय ग्रहण करता है वह अनित्य-अशुद्ध-पर्यायार्थिक नय कहा गया है ।
स्वभावानित्यपर्यायग्राहकोऽशुद्ध उच्यते ॥सं.न.च.४२॥ |