+ भूत नैगम-नय -
अतीते वर्तमानारोपणं यत्र, स भूतनैगमो यथा अद्य दीपोत्‍सवदिने श्रीवर्द्धमानस्‍वामी मोक्षं गत: ॥65॥
अन्वयार्थ : जहां पर अतीतकाल में वर्तमान को संस्‍थापन किया जाता है, वह भूत नैगम नय है। जैसे -- आज दीपावली के दिन श्री महावीर स्‍वामी मोक्ष गये हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

जो नय भूतकाल सम्‍बन्‍धी पर्याय को वर्तमान काल में आरोपण करके, संस्‍थापन करके कहता है उसको भूत नैगम नय कहते हैं ।

प्राकृत नयचक्र में भी इसी प्रकार कहा गया है --

णिव्वित्तदव्‍वकिरिण वट्टणकाले दु जं समाचरणं ।
तं भूयणइगमणयं जह अद्व णिव्‍वुइदिणं वीरे ॥३३/८॥
अर्थ – जो क्रिया हो चुकी उसको वर्तमान काल में समाचरण करना वह भूत नैगम नय है जैसे आज महावीर भगवान का निर्वाण दिवस है ।

अतीतं सांप्रतं कृत्‍वा निर्वाणं त्‍वद्य योगिन: ।
एवं वद्त्‍यभिप्रायो नैगमातीतवाचक्र: ॥१सं.न.च.१२॥
अर्थ – जो अतीत योगियों के निर्वाण की वर्तमान में बललाता है वह भूत नैगम नय का विषय है ।

तीर्थकरपरमदेवादिपरमयोगींद्रा: अतीतकाले सकलकर्मक्षयं कृत्‍वा निर्वाणपदं प्राप्‍ता: सं‍तोपि इदानीं सकलकर्मक्षयं कृतवंत इति निर्वाणपूजाभिषेकार्चनाक्रियाविशेषान् कुर्वत: कारयंत इति अथवा व्रतगुरू-श्रुतगुरू-जन्‍मगुरू-प्रभृति सत्‍पुरूषा अतीतकाले समाधिविघिना भत्‍यंतरप्राप्‍ता अति ते इदानीं अतिक्रांता: भवन्ति इति तद्दिने तेषां गुणानुरागेण दानपूजाभिषेकार्चनानि सांप्रतं कुर्वन्‍त इत्‍याद्यतीत विषयान् वर्तमानवत् कथनं अतीतनेगभनयो भवति ॥सं.न/च//१०॥
अर्थ – यद्यपि तीर्थकर परमदेव आदि योगीन्‍द्र अतीतकाल में सम्‍पूर्ण कर्मों का क्षय करके निर्वाण को प्राप्‍त करे चुके हैं, फिर भी वर्तमान में वे सम्‍पूर्ण कर्मों का क्षय करने वाले हैं, इस प्रकार निर्वाण की पूजा, अभिषेक और अर्चना विशेष क्रियाओं को वर्तमान में करते और कराते हैं । अथवा व्रतगुरू, दीक्षा-गुरू, शिक्षागुरू, जन्‍मगुरू आदि सत्‍पुरूष समाधि विधि से दूसरी गति को प्राप्‍त हो चुके हैं, फिर भी वे आज समाधि से युक्‍त हुए हैं, इस प्रकार से उस उस दिन के गुणानुराग से दान, पूजा, अभिषेक और अर्चा को वर्तमान काल में करते हैं । इस प्रकार अतीत विषयों को वर्तमान के समान कथन करना भूत-नैगम नय है ।