मुख्तार :
नैगम नय का स्वरूप सूत्र ४१ की टीका में कहा गया है और आगे सूत्र १९६ में कहेंगे । नैगमनय के तीन भेदों का स्वरूप ग्रंथकार कहते हैं । कुछ आचार्य नैगमनय छह प्रकार की कहते हैं । जैसे -- १. अतीत को वर्तमान, २. वर्तमान को अतीत, ३. अनागत को वर्तमान, ४. वर्तमान को अनागत, ५. अनागत को अतीत, ६. अतीत को अनागत कहना । |