मुख्तार :
प्रारम्भ किये गये किसी कार्य को, उस कार्य के पूर्ण नहीं होने पर भी पूर्ण हुआ कह देना वर्तमान नैगम नय है । जैसे -- कोई पुरूष भात बनाने की सामग्री एकट्ठी कर रहा था किन्तु उसका यह कहना कि 'भात बना रहा हूँ', वर्तमान नैगम नय का विषय है । प्राकृत नय चक्र में भी कहा है - पारद्धा जा किरिया पयणविद्दाणादि कहइ जो सिद्धा ।
अर्थ – चावल पकाने की क्रिया प्रारम्भ करते समय पूछे जाने पर यह कहना कि 'भात बना रहा हूँ' वर्तमान नैगम नय है ।लोए व पुच्छमाणे तं भण्णइ वट्टमाणणयं ॥प्रा.न.च.३४/८॥ संस्कृत नय चक्र में भी कहा है -- अनिष्पन्नं क्रियारूपं निष्पन्नं गदति स्फुटं ।
अर्थ – अपूर्ण कियारूप को जो निष्पन्न-पूर्ण बतलाता है वह वर्तमान नैगममय है । जैसे -- भात पकाया जाता है ।नैगमो वर्तमान: स्यादोदनं पच्यते यथा ॥सं.न.च.२/११॥ वसतिं करोति , ओदनं पक्वान्नं पचामि, वाहं करोमीत्याद्यनिष्पन्नक्रियविशेषानु- द्दिश्य निष्पन्ना इति वदनं वर्तमाननैगमनय: ॥१०॥
अर्थ – मैं वसतिका बताता हूँ, भात को, पक्वान्न को पकाता हूँ, इत्यादि अपूर्ण क्रिया विशेषों को लक्ष्य करके 'पक गये' ऐसा कहना वर्तमान नैगम नय है ।॥ इस प्रकार नैगम नय के तीनों भेदों का निरूपण हुआ ॥ |