
मुख्तार :
सूक्ष्मं जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिर्नैव हन्यते ।
जिनेन्द्र-भगवान के कहे हुए सूक्ष्म-तत्त्व हेतुओं के द्वारा खण्डित नहीं किये जा सकते । उन आज्ञासिद्ध सूक्ष्म तत्त्वों को ग्रहण करना चाहिये क्योंकि जिनेन्द्र भगवान अन्यथावादी नहीं होते ।आज्ञासिद्धं तु तद्ग्राह्यं नान्यथावादिनो जिना: ॥५॥ विशेषार्थ – अगुरूलघु गुण के विषय में सूत्र ९ व सूत्र १७ के विशेषार्थ में बहुत कुछ कहा जा चुका है, वहां से देख लेना चाहिये । अनेक विषमभावरूपी गहन संसार में प्राप्ति के हेतु कर्मरूपी शत्रु हैं । इन कर्मरूपी शत्रुओं को जिनसे जीत लिया अथवा क्षय कर दिया, वह जिन है । उन जिनेन्द्र भगवान ने ही अगुरूलघुगुण का कथन किया है और वह अनुमान आदि से भी सिद्ध होता है । |