+ प्रदेशत्‍व गुण -
प्रदेशस्‍यभाव: प्रदेशत्‍वं क्षेत्रत्‍वं अविभागिपुद्गलपरमाणु-नावष्‍टब्‍धम् ॥100॥
अन्वयार्थ : प्रदेश का भाव प्रदेशत्‍व है अथवा क्षेत्रत्‍व है । एक अविभागी पुद्गल परमाणु के द्वारा व्‍याप्‍त क्षेत्र को प्रदेश कहते हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

वृहद् द्रव्‍यसंग्रह में भी प्रदेश का लक्षण निम्‍न प्रकार कहा है --

जावदियं आयासं अविभागिपुग्‍गलाणुवठ्टद्धं ।
तं खु पदेसं जाणे सव्‍वाणुठ्टाणुदाणरिहं ॥व्र.द्र.सं.२७॥
अर्थ – जितना आकाश का क्षेत्र अविभागी पुद्गल परमाणु द्वारा रोका जाता है वह प्रदेश है।

प्राकृत नयचक्र में प्रदेश का लक्षण निम्‍न प्रकार का है --

जैत्तियभेत्तं खेतं अणूण रूद्घं खु गयणदव्‍वस्‍स ।
तं च पण्‍सं भणियं जाण तुमं सव्‍वद्रसीहि ॥प्रा.न.च.१४१॥
अर्थ – आकाश द्रव्‍य के जितने क्षेत्र को पुद्गल परमाणु रोकता है, उसको प्रदेश जानो, ऐसा सर्वज्ञ ने कहा है ।

इस आकाश प्रदेश के द्वारा ही धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य, जीव-द्रव्‍य और काल-द्रव्‍य में प्रदेशों की गणना की जाती है ।