शुद्धस्यैकान्तेनात्मनो. न कर्ममल-कलङ्कावलेपः सर्वथा निरंजनत्वात् ॥146॥
अन्वयार्थ : सर्वथा एकान्त से शुद्धस्वभाव के मानने पर आत्मा सर्वथा निरंजन हो जायगी । निरंजन हो जाने से कर्ममलरूपी कलक्ङ का अवलेप अर्थात् कर्मबंध सम्भव नहीं होगा ।
मुख्तार
मुख्तार :
यदि आत्मा को सर्वथा-शुद्ध माना जाय तो कर्मो से रहित होने के कारण आत्मा के कर्म-बंध नहीं होगा ।