+ सर्वथा अनेक प्रदेशत्‍व में दोष -
सर्वथा अनेकप्रदेशत्वेऽपि तथा तस्यानर्थकार्यकारित्वं स्वस्वभावशून्यताप्रसंगात्‌ ॥145॥
अन्वयार्थ : आत्‍मा के अनेक प्रदेशत्‍व मानने पर भी अखण्‍ड एकप्रदेशस्‍वरूप-आत्‍म-स्‍वभाव के अभाव हो जाने से अर्थक्रियाकारित्‍व का अभाव हो जायगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यद्यपि आत्‍मा बहु-प्रदेशी है तथापि अखण्‍ड, एक द्रव्‍य है । यदि अखण्‍डता की अपेक्षा आत्‍मा को एक-प्रदेश न माना जाय तो सर्व-प्रदेश बिखर जायेंगे, परस्‍पर कोई सम्‍बन्‍ध नहीं रहेगा । अतः अर्थक्रिया-कारित्‍व का अभाव हो जायगा । 'अर्थक्रियाकारित्‍व' का अर्थ सूत्र १२९ के विशेषार्थ में देखना चाहिये ।