
मुख्तार :
यद्यपि आत्मा बहु-प्रदेशी है तथापि अखण्ड, एक द्रव्य है । यदि अखण्डता की अपेक्षा आत्मा को एक-प्रदेश न माना जाय तो सर्व-प्रदेश बिखर जायेंगे, परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा । अतः अर्थक्रिया-कारित्व का अभाव हो जायगा । 'अर्थक्रियाकारित्व' का अर्थ सूत्र १२९ के विशेषार्थ में देखना चाहिये । |