+ सर्वथा उपचरित-स्‍वभाव में दोष -
उपचरितैकान्त पक्षेऽपि. नात्मज्ञता सम्भवति नियमित पात्वात् ॥148॥
अन्वयार्थ : उपचरित-स्‍वभाव के एकान्‍त पक्ष में भी आत्‍मज्ञता सम्‍भव नहीं है, क्‍योंकि नियत पक्ष है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र १२४ में बतलाया गया कि उपचरित-स्‍वभाव से परज्ञता है । यदि सर्वथा उपचरित-स्‍वभाव माना जाय और अनुपचरित-स्‍वभाव न माना जाय तो आत्‍मा में परज्ञता ही रहेगी और आत्‍मज्ञता अनुपचरित-स्‍वभाव होने से उसके स्‍वभाव का प्रसंग आ जायगा ।