+ जीव में अचेतन-स्‍वभाव -
जीवस्याप्यसद्भूतव्यवहारेणाचेतनस्वभावः ॥162॥
अन्वयार्थ : विजात्‍यसद्भूतव्‍यवहार उपनय की अपेक्षा जीव के भी अचेतन-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र २९ के विशेषार्थ में जीव के अचेतनभाव का विशेष कथन है । अचेतनभाव जीव का निजस्‍वभाव नहीं है । कर्म-बंध के कारण जीव में अचेतनभाव है, अतः यह विजात्यसद्भूत व्‍यवहार उपनय का विषय है । सूत्र ८६ में विजात्‍यसद्भूत व्‍यवहार-उपनय का कथन है । असद्भूतव्‍यवहार नय का कथन सूत्र २०७ में है ।