
मुख्तार :
सूत्र २९ के विशेषार्थ में जीव के अचेतनभाव का विशेष कथन है । अचेतनभाव जीव का निजस्वभाव नहीं है । कर्म-बंध के कारण जीव में अचेतनभाव है, अतः यह विजात्यसद्भूत व्यवहार उपनय का विषय है । सूत्र ८६ में विजात्यसद्भूत व्यवहार-उपनय का कथन है । असद्भूतव्यवहार नय का कथन सूत्र २०७ में है । |