+ पुद्गल में मूर्त-स्‍वभाव -
परमभावग्राहकेण कर्मनोकर्मणोर्मूर्त्तस्‍वभावः ॥163॥
अन्वयार्थ : परमभावग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा कर्म, नोकर्म के मूर्त-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

परमभावग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय का कथन सूत्र १९० व ५६ में है । कर्म, नोकर्म पौद्गलिक हैं । मूर्त-स्‍वभाव पुद्गल का असाधारण गुण है । अतः कर्म, नोकर्म के मूर्त-स्‍वभाव परमभावग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है ।