+ निश्‍चय-नय -
अभेदानुपचारितया वस्‍तुनिश्‍चीयत इति निश्‍चयः ॥204॥
अन्वयार्थ : अभेद और अनुपचारता से जो नय वस्‍तु का निश्‍चय करे वह निश्‍चय नय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

गुण-गुणी, पर्याय-पर्यायी का भेद अथवा द्रव्‍य में पर्याय या गुण-भेद निश्‍चय-नय का विषय नहीं है, जैसा कि समयसार गाथा ६ व ७ में कहा गया है । अन्‍य द्रव्‍य के सम्‍बन्‍ध से द्रव्‍य में उपचरित होने वाले धर्म भी निश्‍चय-नय का विषय नहीं है । अतः इस निश्‍चय-नय का विषय, भेद और उपचार की अपेक्षा से रहित अखण्‍ड द्रव्‍य है । गाथा ४ में कहा भी गया है कि निश्‍चय नय का हेतु द्रव्‍यार्थिक नय है ।