+ केवल पर्यायार्थिकनय का वक्तव्य पूर्ण नहीं -
जह दवियमप्पियं तं तहेव अस्थि त्ति पज्जवणयस्स ।
ण य स समयपन्नवणा पज्जवणयमेत्तपडिपुण्णा ॥42॥
यथा द्रव्यमर्पितं तत्तथैवास्तीति पर्यवनयस्य ।
न च स्वसमयप्रज्ञापना पर्यवनयमात्रप्रतिपूर्णा ॥42॥
अन्वयार्थ : [जह] जैसे [दवियं] द्रव्य [अष्पियं] अर्पित (विवक्षित) [तं] वह [तहेव] वैसा ही [अत्थि] है [त्ति] यह (ऐसा) [पज्जवणयस्स] पर्यायार्थिकनय का (कथन है); (किन्तु) [पज्जवणयर्मेत्त] पर्यायार्थिकनय मात्र [पड़िपुण्णा] परिपूर्ण [ससमयपण्णवणा] स्वसमय (आत्मतत्त्व की) प्ररूपणा [ण] नहीं (है)
Meaning : Paryayarthika-naya maintains that the modification which a thing undergoes at a particular time is its real nature. But this view of Paryayarthika since it does not take into consideration the substance (underlying the modifications) does not cover the whole truth as propagated by Jains.

  विशेष