सर्वनाकीन्द्रवंदित - कल्याणपरंपरं देवं ।
प्रणिपत्य वर्द्धमानं श्रुतस्य वक्ष्येऽहमवतारम् ॥१॥
अन्वयार्थ : सभी स्वर्ग आदि के इन्द्रों से वंदित सर्वकल्याण की परम्परा के स्थान ऐसे वर्धमान देव-अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को नमस्कार करके मैं श्रुत के अवतार को कहूँगा ॥१॥
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