यद्यप्यनाद्यनिधनं श्रुतं तथाप्यत्र तन्निभेदेन मया ।
कालाश्रयेण तस्योत्पत्तिविनाशौ प्रवक्ष्येते ॥२॥
अन्वयार्थ : यद्यपि श्रुत अनादिनिधन है अर्थात् अनादिकाल से है और अनंतकाल तक रहेगा परन्तु यहाँ पर काल के आश्रय से जो उसका अनेक बार उत्पाद और विनाश हुआ है, उसका वर्णन करते हैं ॥२॥