एकैकस्य पृथग्दशकोटीकोट्य: प्रमाणमुद्दिष्टं ।
वाध्र्युपमानावेतौ समाश्रितौ भवति कल्प इति ॥४॥
अन्वयार्थ : अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल की स्थिति पृथक्-पृथक् दश कोड़ाकोड़ी सागर की है। दोनों की स्थिति के काल को कल्पकाल कहते हैं ॥४॥