भरतेऽस्मिन्नवसर्पिण्युत्सर्पिण्याह्व्यौ प्रवर्तेते ।
कालौ सदापि जीवोत्सेधायुर्ह्रासवृद्धिकरौ ॥३॥
अन्वयार्थ : इस भरतक्षेत्र में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नाम के दो काल प्रवर्तते रहते हैं जिनमें कि निरंतर जीवों के शरीर की ऊँचाई और आयु में न्यूनाधिकता हुआ करती है ॥३॥