आद्यं जीवस्थानं क्षुल्लकबन्धाह्व्यं द्वितीयमत: ।
बंधस्वामित्वं भाववेदनावर्गणाखण्डे ॥१४१॥
एवं षट्खण्डागमरचनां प्रविधाय भूतबल्यार्य: ।
आरोप्यासद्भावस्थापनया पुस्तकेषु तत: ॥१४२॥
ज्येष्ठसितपक्षपंचम्यां चातुर्वर्ण्यसंघसमवेत: ।
तत्पुस्तकोपकरणैर्व्यधात्क्रियापूर्वकं पूजाम् ॥१४३॥
श्रुतपंचमीति तेन प्रख्यातिं तिथिरियं परामाप ।
अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैना: ॥१४४॥
अन्वयार्थ : पहले पाँच खंडो के नाम ये हैं - जीवस्थान, क्षुल्लकबंध, बंधस्वामित्व, भाववेदना और वर्गणा। श्री भूतबलि मुनि ने इस प्रकार षट्खण्डागम की रचना करके उसे असद्भाव स्थापना के द्वारा पुस्तकों में आरोपण किया अर्थात् लिपिबद्ध किया और उसकी ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को चतुर्विध संघ के सहित वेष्टनादि उपकरणों के द्वारा क्रियापूर्वक पूजा की। उसी दिन से यह ज्यष्ठे शुक्ला पंचमी संसार में [[श्रुतपंचमी]] के नाम से प्रख्यात हो गई। इस दिन श्रुत का अवतार हुआ है, इसलिये आज पर्यन्त समस्त जैनी उक्त तिथि को श्रुतपूजा करते हैं ॥१४१-१४४॥