अण्णो करेदि कम्मं अण्णो तं भुंजदीदि सिद्धंतं ।
परि कप्पिऊण णूणं वसिकिच्चा णिरयमुववण्णो ॥10॥
अन्य: करोति कर्म अन्यस्तद्भुनक्तीति सिद्धान्तम्‌ ।
परिकल्पयित्वा नूनं वशीकृत्य नरकमुपपन्न: ॥१०॥
अन्वयार्थ : एक पाप करता है और दूसरा उसका फल भोगता है, इस तरह के सिद्धान्त की कल्पना करके और उससे लोगों को वश में करके या अपने अनुयायी बनाकर वह मरा और नरक में गया। (इसमें बौद्ध के क्षाणिकवाद की ओर इशारा किया गया है । जब संसार की सभी वस्तुएँ क्षणस्थायी हैं, तब जीव भी क्षणस्थायी ठहरेगा और ऐसी अवस्था में एक मनुष्य के शरीर में रहनेवाला जीव जो पाप करेगा उसका फल वही जीव नहीं, किन्तु उसके स्थान पर-आनेवाला दूसरा जीव भोगेगा ।)