मज्जं ण वज्जणिज्जं दवदव्वं जहजलं तहा एदं ।
इदि लोए घोसित्ता पवट्टियं सव्वसावज्जं ॥9॥
मद्यं न वर्जनीयं द्रवद्रव्यं यथा जलं तथा एतत् ।
इति लोके घोषयित्वा प्रवर्तितं सर्वसावद्यं ॥९॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार जल एक द्रव पदार्थ है उसी प्रकार शराब है, वह त्याज्य नहीं है । इस प्रकार की घोषणा करके उसने संसार में सम्पूर्ण पापकर्म की परिपाटी चलाई ।