अंबरसहिओ वि जई सिज्झइ वीरस्स गब्भचारत्तं ।
पर लिंगे वि य मुत्ती फासुयभोजं च सव्वत्थ ॥14॥
अम्बरसहितः अपि यतिः सिद्ध्यति वीरस्य गर्भचारत्वम् ।
परलिंगेपि च मुक्तिः प्राशुकभोज्यं च सर्वत्र ॥१४॥
अन्वयार्थ : वस्त्रधारण करनेवाला भी मुनि मोक्ष प्राप्त करता है, महावीर मगवान के गर्भ का संचार हुआ था, (वे पहले ब्राह्मणी के गर्भ में आये, पीछे क्षत्रियाणी के गर्भ में चले गये), जैनमुद्रा के अतिरिक्त अन्य मुद्राओं या वेषों से भी मुक्ति हो सकती है और प्रासुक भोजन सर्वत्र हर किसी के यहाँ कर लेना चाहिए ।