सुव्वयतित्थे उज्झो खीरकदंबुत्ति सुद्धसम्मत्तो ।
सीसो तस्स य दुठ्ठो पुत्तो वि य पव्वओ वक्को ॥16॥
सुव्रततीर्थे उपाध्यायः क्षीरकदम्ब इति शद्धसम्यक्त्वः ।
शिष्यः तस्य च दुष्ट: पुत्रोपि च पर्वतः वक्र: ॥१६॥
अन्वयार्थ : बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के समय में एक क्षीरकदम्ब नाम का उपध्याय था । वह शुद्ध सम्यग्दृष्टि था । उसका शिष्य दुष्ट था और पर्वत नाम का पुत्र वक्र था ।