सो समणसंघवज्जो कुमारसेणो हु समयमिच्छतो ।
चत्तोवसमो रुद्दो कट्ठं संघं परूवेदि ॥37॥
स श्रमणसंघवर्ज्य: कुमारसेनः खलु समयमिथ्यात्वी ।
त्यक्तोपशमो रुद्रः काष्ठासंघं प्ररूपयति ॥३७॥
अन्वयार्थ : इस तरह उस मुनिसंघ से बहिष्कृत, समय-मिथ्यादृष्टि, उपशम को छोड़ देनेवाले और रौद्र परिणाम वाले कुमारसेन ने काष्ठासंघ का प्ररूपण किया ।