इत्थीणं पुणदिक्खा खुल्लयछोयस्स वीरचरियत्तं ।
कक्कसकेसग्गहणं छट्ठं च गुणव्वदं नाम ॥35॥
आयमसत्थपुराणं पायच्छित्तं च अण्णहा किंपि ।
विरइत्ता मिच्छत्तं पवट्टियं मूढलोएसु ॥36॥
स्त्रीणां पुनर्दीक्षा क्षुल्लकलोकस्य वीरचर्यत्वम् ।
कर्कशकेशग्रहणं षष्ठं च गुणव्रतं नाम ॥३५॥
आगमशास्त्रपुराणं प्रायश्चित्तं च अन्यथा किमपि ।
विरच्य मिथ्यात्वं प्रवर्तितं मूढ़लोकेषु ॥३६॥
अन्वयार्थ : उसने स्त्रियों को दीक्षा देने का, क्षुल्ककों को वीरचर्या का मुनियों को कड़े बालों की पिच्छी रखने का और (रात्रिभोजन-त्याग नामक) छट्ठे गुणव्रत का विधान किया । इसके सिवाय उसने अपने आगम, शास्त्र, पुराण और प्रायश्चित्त ग्रन्थों को कुछ और ही प्रकार के रचकर मूर्ख लोगों में मिथ्यात्व का प्रचार किया ।