तत्तो दुसएतीदे महुराए माहुराण गुरुणाहो ।
णामेण रामसेणो णिप्पिच्छं वण्णियं तेण ॥40॥
ततो द्विशतेऽतीते मथुरायां माथुरायां गुरुनाथः ।
नाम्ना रामसेनः निष्पिच्छिं वर्णितं तेन ॥४०॥
अन्वयार्थ : इसके २०० वर्ष बाद अर्थात् विक्रम की मृत्युके ९५३ वर्ष बाद मथुरा नगर में माथुर संघ का प्रधान गुरु रामसेन हुआ । उसने निःपिच्छिक रहने का वर्णन क़िया । अर्थात् यह उपदेश दिया कि मुनियों को न मोर के पंखों की पिच्छी रखने की आवश्यकता है और न बालों की । उसने पिच्छी का सर्वथा ही निषेध कर दिया ।