+ गति-संयुक्त नाम-कर्म बंध के आठ स्थान -
गति-संयुक्त नाम-कर्म बंध के आठ स्थान

  विशेष 

विशेष :


नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
गति-सहित बंध प्रकृति स्थान स्वामी भंग प्रकृतियों का विवरण
x 1 8*, 9, 10 गुणस्थान 1 यश:कीर्ति
नरक-गति सहित 28 मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, नारकद्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, हुंडक, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात
तिर्यञ्च-गति सहित 23 मिथ्यादृष्टि (तिर्यञ्च/मनुष्य) 9308 4 ध्रुव/9, स्थावर, 1 (बादर या सूक्ष्म), 1 (साधारण या प्रत्येक), अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान
25 मिथ्यादृष्टि 20 ध्रुव/9, स्थावर, 1 (बादर या सूक्ष्म), 1 (साधारण या प्रत्येक), पर्याप्त, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात
मिथ्यादृष्टि 4 ध्रुव/9, त्रस, बादर, प्रत्येक, अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, 1 जाति (2-5 इंद्रिय, भंग 4), औदारिक-द्विक, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन
26 मिथ्यादृष्टि 16 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात, 1 (आतप या उद्योत)
29 मिथ्यादृष्टी 4608 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल (सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (६ संस्‍थानों से ६ भंग), 1 संहनन (६ संहनन से ६ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
सासादन सम्यग्दृष्टि 3200 (पुनरुक्त) ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल (सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (५ संस्‍थानों से ५ भंग), 1 संहनन (५ संहनन से ५ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 24 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-४ इन्द्रिय, ३ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात
30 29 प्रकृतियों के स्वामी के समान 4608 उपरोक्त 29 प्रकृतियाँ + उद्योत
3200 (पुनरुक्त)
24
मनुष्य-गति सहित 30 सम्यग्दृष्टि (देव/नारकी) 4617 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 3 (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), सुभग, सुस्वर, आदेय, मनुष्‍य-द्वय, औदारिक-द्वय, पंचन्द्रिय, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रऋषभ-नाराच संहनन, प्रशस्त-विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर
29 अविरत सम्यग्दृष्टि / मिश्र (देव/नारकी) 8 (पुनरुक्त) उपरोक्त 30 - तीर्थंकर
सासादन सम्यग्दृष्टि 3200 (पुनरुक्त) ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 7 (७ युगल -- स्थिर, शुभ, यश, सुभग, सुस्वर, आदेय, विहायोगति के १२८ भंग), मनुष्‍य-द्वय, औदारिक-द्वय, पंचन्द्रिय, १ संस्थान (हुंडक को छोड़कर, ५ भंग), १ संहनन (सृपाटिका को छोड़कर, ५ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
मिथ्यादृष्टि 4608 उपरोक्त में संस्थान और संहनन के छहों विकल्प
25 मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 1 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, मनुष्य-द्विक, पंचेंद्रिय-जाति, औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान
देव-गति सहित 31 अप्रमत्त, अपूर्वकरण 20 1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश, देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर, आहारक-द्विक
30 अप्रमत्त 1 उपरोक्त 31 - तीर्थंकर
29 संयमी 1 (पुनरुक्त) उपरोक्त 31 - आहारक-द्विक
सम्यग्दृष्टि मनुष्य (4,5,6 गु.) 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर
28 संयमी 1 (पुनरुक्त) उपरोक्त 31 - (तीर्थकर, आहारक-द्विक)
मिथ्यादृष्टि से प्रमत्त-संयत 8 द्वितीय 29 प्रकृति-स्थान - तीर्थंकर
23 सामान्य प्रकृतियाँ 9 ध्रुव-बंधी (ध्रु./9 = तेजस, कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क)
9 युगल (यु./9 = त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश)
5 (गति-४, जाति-५, शरीर-३, संस्थान-६, आनुपूर्वी-४)
त्रस प्रकृति के बंध के साथ ही संहनन व अङ्गोपांग के बंध का नियम है
पर्याप्त प्रकृति के साथ ही उच्छ्वास व परघात के बंध का नियम है
त्रस और पर्याप्त प्रकृति के साथ २ (स्वर-द्विक, विहायोगति-द्विक में से प्रत्येक के अन्यतम) के बंध का नियम है
आतप का बंध पृथ्वीकायिक बादर पर्याप्त के साथ ही होता है
उद्योत का बंध बादर पर्याप्त [पृथ्वी, जल, प्रत्येक-वनस्पति] अथवा त्रस के साथ होता है



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