+ नाम-कर्म बंध के आठ स्थान -
नाम-कर्म बंध के आठ स्थान

  विशेष 

विशेष :


नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
स्थान भंग प्रकृतियों का विवरण स्वामी संख्या स्वामी
1 1 यश:कीर्ति 3 8/7, 9, 10 गुणस्थान
23 3 1 ध्रुव/9, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान 11 5 सूक्ष्म अपर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
1 उपरोक्त 23 - सूक्ष्म + बादर 5 बादर अपर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
1 23 - (सूक्ष्म, साधारण) + (बादर, प्रत्येक) 1 बादर अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पति के बंधक
25 64 4 ध्रुव/9, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, पर्याप्त, 2 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ] के 4 भंग), दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात 17 5 सूक्ष्म पर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
4 उपरोक्त 25 - सूक्ष्म + बादर 1 बादर पर्याप्त साधारण वनस्पति के बंधक
8 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात 4 आतप रहित बादर, प्रत्येक, पर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु)
8 उपरोक्त 25 - (सूक्ष्म, साधारण) + (बादर, प्रत्येक) 1 बादर पर्याप्त प्रत्येक वनस्पति (उद्योत रहित)
32 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यञ्च-द्विक, १ जाति [२-५ इंद्रिय के ४ भंग], औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान 5 अपर्याप्त त्रस संज्ञी / असंज्ञी तिर्यञ्च (उद्योत-रहित)
8 उपरोक्त 25 - (तिर्यञ्च-द्वय) + (मनुष्य-द्वय) 1 अपर्याप्त मनुष्य के बंधक
26 48 8 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात, आतप 8 1 बादर पर्याप्त पृथ्वी (आतप सहित)
8 उपरोक्त 26 - आतप + उद्योत 3 बादर पर्याप्त (पृथ्वी, जल, वनस्पति) (उद्योत सहित)
32 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यञ्च-द्विक, १ जाति [२-५ इंद्रिय के ४ भंग], औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान, उद्योत 4 बादर विकलत्रय, असंज्ञी पंचेंद्रिय (उद्योत सहित)
28 9 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देवद्वय, पंचेन्द्रिय, वैक्रियक द्वय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त-विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 2 1 देव-गति के बंधक
1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, नारकद्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, हुंडक, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 1 नरक-गति के बंधक, मिथ्यादृष्टि मनुष्य / तिर्यञ्च
29 32 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-५ इन्द्रिय इन ४ में अन्‍यतम से ४ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 7 4 बादर पर्याप्त 2-4 इंद्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक (उद्योत रहित)
4608 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल ([सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश] से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (६ संस्‍थानों से ६ भंग), 1 संहनन (६ संहनन से ६ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात 1 पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक
4608 उपरोक्त २९ - तिर्यंच द्वय + मनुष्‍य द्वय 1 पर्याप्त मनुष्‍य का बन्‍धक नारकी
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर 1 देवगति व तीर्थंकर के बन्‍धक
30 328 32 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-५ इन्द्रिय इन ४ में अन्‍यतम से ४ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, उद्योत 6 4 बादर पर्याप्त 2-4 इंद्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक (उद्योत सहित)
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, स्थिर, शुभ, सुभग, यश, आदेय / अनादेय, मनुष्‍य द्वय, औदारिक द्वय, पंचन्द्रिय, समचतुरस्र, वज्रऋषभ-नाराच संहनन, 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर 1 मनुष्‍य व तीर्थंकर का बन्‍धक
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, आहारक-द्विक 1 देव व आहारक का बन्‍धक
31 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर, आहारक-द्विक 1 देवगति, आहारक व तीर्थंकर का बन्‍धक
23 सामान्य प्रकृतियाँ 9 ध्रुव-बंधी (ध्रु./9 = तेजस, कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क)
9 युगल (यु./9 = त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश)
5 (गति-४, जाति-५, शरीर-३, संस्थान-६, आनुपूर्वी-४)
त्रस प्रकृति के बंध के साथ ही संहनन व अङ्गोपांग के बंध का नियम है
पर्याप्त प्रकृति के साथ ही उच्छ्वास व परघात के बंध का नियम है
त्रस और पर्याप्त प्रकृति के साथ २ (स्वर-द्विक, विहायोगति-द्विक में से प्रत्येक के अन्यतम) के बंध का नियम है
आतप का बंध पृथ्वीकायिक बादर पर्याप्त के साथ ही होता है
उद्योत का बंध बादर पर्याप्त [पृथ्वी, जल, प्रत्येक-वनस्पति] अथवा त्रस के साथ होता है