विशेष :
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मूल-प्रकृतियों के अनुभाग बंध में सादि-अनादि / उत्कृष्टादि प्ररूपणा |
प्ररूपणा |
कर्म |
उत्कृष्ट |
अनुत्कृष्ट |
जघन्य |
अजघन्य |
संज्ञा |
घाति |
घातिया |
सर्वघाती |
सर्वघाती, देशघाती
| देशघाती |
देशघाती, सर्वघाती |
स्थान |
घातिया |
चतुःस्थानीय |
चतुःस्थानीय, त्रिस्थानीय, द्विस्थानीय, एकस्थानीय |
एकस्थानीय |
एकस्थानीय, द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, चतुःस्थानीय |
अघातिया |
चतुःस्थानीय |
चतुःस्थानीय, त्रिस्थानीय, द्विस्थानीय |
द्विस्थानीय |
द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, चतुःस्थानीय |
सर्व-नोसर्व बंध |
आठों कर्म |
सर्व, नोसर्व |
सर्व, नोसर्व |
सर्व, नोसर्व |
सर्व, नोसर्व |
सब अनुभाग का बन्ध होता है, इसलिए सर्वबन्ध होता है। और उससे न्यून अनुभाग का बन्ध होता है, इसलिए नोसर्वबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । |
सादि-अनादि-ध्रुव-अध्रुवबन्ध |
घातिया |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव |
अघातिया |
वेदनीय |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव |
नाम |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव |
गोत्र |
सादि, अध्रुव |
सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव |
आयु |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
सादि, अध्रुव |
इसी प्रकार ओघ के समान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य और मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि भव्यजीवों में ध्रुवबन्ध नहीं होता है । शेष मार्गणाओं में सादि और अध्रुवबन्ध होता है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । |
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महबंधो - 1 (अनुभाग-बंध, 24 अनुयोग-द्वार प्ररूपणा) |
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