विशेष :
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वेद मार्गणा में कर्म का उदय |
उदय |
अनुदय |
व्युच्छिति |
पुरुष |
मिथ्यात्व |
103 |
4 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक) |
1 (मिथ्यात्व) |
सासादन |
102 |
5 |
4 (अनंतानुबंधी ४) |
मिश्र |
96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) |
11 (आनुपूर्वी ३) |
1 (सम्यकमिथ्यात्व) |
अविरत |
99 (+सम्यक-प्रकृति, आनुपूर्वी ३) |
8 |
14 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव-त्रिक, वैक्रियिक-द्विक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग) |
संयतासंयत |
85 |
22 |
8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत) |
प्रमत्तसंयत |
79 (+आहारक-द्विक) |
28 |
5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक) |
अप्रमत्तसंयत |
74 |
33 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
70 |
37 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
64 |
43 |
64 (संज्वलन ४, पुरुषवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 107 = 122 - 15 (स्थावरचतुष्क, नरक-त्रिक, वेद २ [स्त्री, नपुंसक], जातिचतुष्क, आतप, तीर्थंकर) |
स्त्री |
मिथ्यात्व |
103 |
2 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) |
1 (मिथ्यात्व) |
सासादन |
102 |
3 |
7 (अनंतानुबंधी ४, आनुपूर्वी ३ [देव, मनुष्य, तिर्यञ्च]) |
मिश्र |
96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) |
9 |
1 (सम्यकमिथ्यात्व) |
अविरत |
96 (+सम्यक-प्रकृति) |
9 |
11 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवगति, देवायु, वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग) |
संयतासंयत |
85 |
20 |
8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत) |
प्रमत्तसंयत |
77 |
28 |
3 (स्त्यान-त्रिक) |
अप्रमत्तसंयत |
74 |
31 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
70 |
35 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
64 |
41 |
64 (संज्वलन ४, स्त्रीवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 105 = 122 - 17 (स्थावरचतुष्क, नरक-त्रिक, वेद २ [पुरुष, नपुंसक], जातिचतुष्क, आतप, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) |
नपुंसक |
मिथ्यात्व |
112 |
2 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) |
5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप) |
सासादन |
106 |
8 (-नरक आनुपूर्वी) |
11 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर, आनुपूर्वी २ [मनुष्य, तिर्यञ्च]) |
मिश्र |
96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) |
18 |
1 (सम्यकमिथ्यात्व) |
अविरत |
97 (+सम्यक-प्रकृति, नरक आनुपूर्वी) |
17 |
12 (अप्रत्याख्यानावरण ४, नरक-त्रिक, वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग) |
संयतासंयत |
85 |
29 |
8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच-गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्चायु, उद्योत) |
प्रमत्तसंयत |
77 |
37 |
3 (स्त्यान-त्रिक) |
अप्रमत्तसंयत |
74 |
40 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
70 |
44 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
64 |
50 |
64 (संज्वलन ४, नपुंसकवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 114 = 122 - 8 (आहारक-द्विक, देव-त्रिक, वेद २ [पुरुष, स्त्री], तीर्थंकर) |
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