विशेष :
| नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग |
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बंधस्थान |
उदयस्थान |
सत्वस्थान |
| मिथ्यात्व |
6 (23,25,26,28,29,30) |
9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) |
6 (92,91,90,88,84,82) |
| सासादन |
3 (28,29,30) |
7 (21,24,25,26,29,30,31) |
1 (90) |
| मिश्र |
2 (28,29) |
3 (29,30,31) |
2 (92,90) |
| असंयत स. |
3 (28,29,30) |
8 (21,25,26,27,28,29,30,31) |
4 (93,92,91,90) |
| देशविरत |
2 (28,29) |
2 (30,31) |
4 (93,92,91,90) |
| प्रमत्त संयत |
2 (28,29) |
5 (25,27,28,29,30) |
4 (93,92,91,90) |
| अप्रमत्त संयत |
4 (28,29,30,31) |
1 (30) |
4 (93,92,91,90) |
| अपूर्वकरण |
4 (28,29,30,31,1) |
1 (30) |
4 (93,92,91,90) |
| अनिवृतिकरण |
उ.श्रे. |
1 (1) |
1 (30) |
4 (93,92,91,90) |
| क्ष.श्रे. |
4 (80,79,78,77) |
| सूक्ष्मसाम्पराय |
उ.श्रे. |
1 (1) |
1 (30) |
4 (93,92,91,90) |
| क्ष.श्रे. |
4 (80,79,78,77) |
| उपशान्तमोह |
0 |
1 (30) |
4 (93,92,91,90) |
| क्षीणमोह |
0 |
1 (30) |
4 (80,79,78,77) |
| सयोगकेवली |
0 |
2 (30,31) |
4 (80,79,78,77) |
| अयोगकेवली |
0 |
2 (9,8) |
6 (80,79,78,77,10,9) |
| गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 693-703 |
| केवली समुद्घात में उदयस्थान -- दंड (30/31) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> प्रतर+लोकपूरण (20/21) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> शरीर-पर्याप्ति (28/29) -> उच्छ्वास पर्याप्ति (29/30) -> भाषा-पर्याप्ति (30/31) |
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